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रविवार, 10 मार्च 2013

अन्नू भाई चला चकराता ...पम्म...पम्म...पम्म (भाग- 3 ) रहस्यमई मोइला गुफा


पिछली पोस्ट में आप ने पढ़ा के दिनभर की जद्दोजहद और यात्रा का आनंद उठाते हुए आखिरकार हम अपने गंतव्य स्थान चकराता और उस पर भी अपने पसंदीदा एतिहासिक होटल स्नो व्यू के कमरे में पहुँच सपनो के दुनिया में खो चुके थे ! आगे …

 रात में मेरी आँख एक दो बार डर कर खुल गयी ...अरे अरे आप लोग घबराओ मत .......क्यूंकि  डर किसी भूत या चुड़ैल हा न होकर इस बात का था की कहीं हम सोते सोते रह जाए और एक खुबसूरत सूर्योदय देखना, कल रात जैसी चाय न हो जाए ......
खैर जी मैं अपनी आदत से मजबूर .....यही की पहाड़ो में सुबह जल्दी उठो और बस निकल पड़ो, प्रकृति की खूबसूरती का मजा लेने! सो आज भी मैं सबसे पहले उठ, अनुज और प्रवीण को बाहर का नजारा लेने के लिए उठाने लगा ! लेकिन कई बार हिलाने और बुलाने पर जब प्रवीण बाबू नहीं उठे तो मैं और अनुज चल पड़े अपनी पहाड़ी सुबह का मजा लूटने !

नींद की खुमारी ....सब पर भारी  (प्रवीण बाबू)

 बाहर आते ही हमारे मुह से निकला .....वाआओ .... क्या सीन है यार .... दूर पहाड़ो के पीछे धरती पर पड़ती सूरज की पहली किरण जैसे कह रही हो, देखा हूँ न मैं बहुत सुंदर ...... थोड़ी देर हम कोतुहल से भरे उस रंग बदलते  पहाडो  और आसमान को देखते रहे ....फिर हमे याद आया की हमारे कैमरे भी इन्ही लम्हों के इंतज़ार में तो थे ...

चकराता की खुबसूरत सुबह ....और उसे कभी निहारंता और कभी कैमरे में सजोंता ...मैं 


कभी इधर कभी उधर, अभी यहाँ से तो कभी वहां से फोटो खीचते खिचवाते हम  उस रंगबिरंगी खुबसूरती का मजा ले रहे थे! सोच रहे थे की आज के महानगरो में रहने वाले हम इंसानों के लिए तो ऐसी सुबह किसी अजूबे के कम नहीं!  जहाँ सूर्योदय तो दूर की बात, दिन में भी काम करने के लिए लाइट जलानी पड  जाती है!
रंग बदलती सुबह के  रंग अनुज के संग 

काफी देर इधर उहर चहल कदमी कर सुबह की मंद मंद हवा अपने फेफड़ो में भरते हुए मै और अनुज उन पलो को अपने कैमरे में कैद करते रहे! लगभग ७ बजे जाकर कहीं प्रवीण बाऊ की नीद की खुमारी उतरी तो वो भी एप्पल मैंने सेब वाला फोन लेकर आगये मैदाने स्नो व्यू होटल में ......पर तब तक तो वो सुबह का जादुई करिश्मा खत्म हो चूका था !

 1 होटल की पार्किंग में आल्टो से बाते करती हमारी बीट,  2 होटल का मुआईना करता अनुज, 
 ३. होटल स्नो व्यू  सामने से,  ४. गुड मोर्निंग हो गयी  प्रवीण  बाबू



तो आप समझ ही गए होंगे ....बस हमारी करी हुई रेकोरडिंग देख कर ही गुड मोर्निंग कर ली उन्होंने तो  ....इधर उधर देख कहने लगा अरे वाह इसी होटल में रुके  हैं हम ....कुछ  देर होटल की और आसपास की फोटो खीचने के बाद हम तीनो पुरे जोश के साथ  आज की यात्रा के लिए स्नान  ध्यान और  होटल वाले साहब का हिसाब कर एक सुने सुनाये प्रसिद्द रेस्तौरेंट शेरे-ए -पंजाब की तलाश में चकराता टाउन की और निकल पड़े!

आप देख सकते हैं पहली  २ फोटो में मोर्निंग वाक के दो रंग १. अनुज २. प्रवीण,
 3 . होटल में हमारे कमरे का  दरवाजा 4  होटल के  साइड मे बनी नयी  ईमारत  से सूर्योदय  देखने का  स्थान
उत्तराखंड में चकराता, यमुना और टोंस नदियों के बीच स्थित विशेष फ्रंटियर बलों के लिए स्थायी चौकी होने के अलावा रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ)  भारत की खुफिया एजेंसी के लिए प्रशिक्षण स्थल भी  है चकराता  अपने  घने जंगलों हरियाली, और स्वास्थ्यप्रद जलवायु के लिए प्रसिद्ध एक शांत पहाड़ी स्टेशन है. चकराता के चारों ओर वन वनस्पतियों और जीव की एक विस्तृत श्रृंखला जैसे  तेंदुआ, जंगली पक्षियों, चित्तीदार हिरण, आदि इन जंगलों में पाया जाती है.
चकराता के आस पास ट्रैकिंग और स्कीइंग के लिए कई लोकप्रिय स्थान आपको मिल जायेंगे! खराम्बा पीक  एक लोकप्रिय ट्रैकिंग स्थल है. इसके आस पास  कई प्राचीन गुफाओं और मंदिरों का पता लगाया जाना अभी बाकी है. हाल ही में होटल हिमालयन पैराडाइस के मालिक जिन्हें लोग बिट्टू के नाम से जानते है उन्होंने एक नई  गुफा  की खोज की थी! जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के भू वैज्ञानिक ने भी सरहां और  जांच पड़ताल कर आंकड़े इक्कट्ठे किये थे!  इस गुफा को अब बिट्टू गुफा के नाम से जाना जाता है! और मेरा भी इस गुफा से कुछ खास खास लगाव हो गया है चूँकि  इत्तेफाकन इस गुफा का नाम मेरे उप  नाम पर है!!
  होटल से निकल हम ठीक रात वाली जगह पहुंचे ,जहाँ हमसे वो जोंसारी आदमी मुन्सिपलिटी की पर्ची काटने के  लिए कह  रहा था ! रात के विपरीत अब तो उस जगह एक  चहल पहल दिखाई दे रही थी और गेट भी खुला ही था ! हसीन वादियों को निहारती पार्किंग में वो भी बिना किसी पार्किंग शुल्क हम अपनी  कार  को छोड़,  प्रसिद्द रेस्तौरेंट शेरे-ए -पंजाब की तलाश में लग गए!

1 & 2 & 4 चकराता पार्किंग से ली गयी फोटो ३ पार्किंग में खड़ी हमारी गाडी और हम 
 जो किसी ने बताया वही उस छोटे से और मेन बाज़ार में थोडा आगे  था ! लेकिन जब मन में आलु के परांठो की आस लगाये हम रेस्टोरेंट तक पहुंचे तो बस क्या बताऊँ ............ वो तो सिफ नाम का शेर था बाकी रहा सहा पंजाब भी तभी गायब हो गया जब उसके मालिक ने कहा अभी खाने को कुछ नहीं मिलेगा दोहपर को आना , अभी तो भट्टी सिल्गायी है .......

1.  चकराता बाज़ार में एक उजाड़ जनता रेस्तौरेंट, 2.  चकराता में घूमते हम ३ अन्नू भाई  की हजामत करता  एक नाइ , 4 .रेस्टुरेंट शेरे-ए-पंजाब  ने हमारे आलु  के पराँठो को धुएं  में उड़ा  दिया  

भट्टी तो पता नहीं सुलगी के नहीं लेकिन हमारी जरुर .......भूख लगी थी सो एक साफ़ सुथरी दूकान देख उसी में चाय और मैगी खाते खाते आगे की योजना बनाई की अभी एक अनजान और सुनसान जगह बुधेर चलेंगे! जहाँ हम रहस्यमई मोइला गुफाओ को ढूंढ़ और देख सकेंगे, फिर कनासार , देवबन और टाईगर फाल  का मजा लेकर गाडी और स्वयं को जहा जगह मिलेगी विश्राम देंगे!



नाश्ता कर हमने अपनी गाडी बुधेर की और बढा दी। बुधेर में वन विभाग की एक चौंकी भी है! जोकि  कोटि कनासर रेंज में पड़ता है! यहाँ से चकराता -त्यूनी मार्ग पर लगभग 20-22  कि मी है! रास्ता बहुत ही सुंदर और  पहाड़ी है! हम भी रास्ते में पड़ते बेहद खुबसूरत सिडिनुमा खेतो को देखते और अपने कैमरों  में कैद करते आगे बढ़ते रहे।

चकराता से कोटि क्नासर के रास्तो और वादियों और गहरी खाइयों  का मजा तो लेते हम, 

सारे रास्ते में मुशकिल से 4-5  गाडिया मिली होंगी। सच कहूँ तो कहीं जगह तो रास्ता इतना डरावना लगने लगता था के कोई नया ड्राईवर हो तो बीच में ही छोड़ के भाग जाए।
 खैर जी हम मनमोजी घुमक्कड़ तो उन रास्तो में भी रोकते रुकाते, पहाड़ो से बह कर आते मीठे ताजे पानी का आनंद उठाते एक जगह पहुचे जहाँ पहली बार किसी बोर्ड पर बुधेर लिखा देखा !

कनासर  और  बढ़ते रास्तों का मजा अलग था 




वहीँ एक टुटा फूटा सा खोखा था जहा पूछने  पर पता चला के बुधेर वहां से थोडा बाई दिशा में जगल की और जाती एक निहायत ही  संकरी और कच्ची रोड से था। रास्ते पर घास और उसमे बने टायरो  के निशान देखकर ही अंदाजा हो रहा था के हम कुछ अलग सा ही देखने जा रहें हैं!



१. बोर्ड पर लिखा बुधेर और रास्ते की और इशारा करता एक जौनसारी , २. बुधेर गेस्ट हाउस की और जाती कच्चा संकरा रास्ता
3. & 4 . कानासर रेंज में फैले देवदार और उनसे होकर बुधेर जाता रास्ता 

लगभग 6 कि मी  आगे जाने  पर जहाँ रास्ता खत्म  था एक बहुत ही सुंदर सा मकान था। लेकिन  दो चार मिनट बाद  देवदारों के पेड़ो के बीच से आये फारेस्ट गार्ड  ने बताया की ये एक फारेस्ट रेस्ट हाउस है  जोकि हमारी गाडी की आवाज़ सुन इस डर  से भाग कर आया था के शायद उसके महकमे के कोई सरकारी बाबू  लोग आयें है, क्यूंकि शायद वो आम इंसानों के वहां न होने का आदि हो गया था। थोड़ी बातचीत कर उसने बताया के मोइला गुफा ( Moila Caves) और वहां  एक ताल (water pond) जो की अभी और आगे  3 कि मी  घने देवदारों से होकर  ट्रैक करने पर आएगी।


सुन्दर  एवं एकांत बुधेर फारेस्ट रेस्ट हाउस को कभी इधर कभी उधर से निहारते हम 
 देखा तो ११  बज चुके थे और पता नहीं अब कितना टाइम और लगेगा सो उस भले मानुस से देर होने पर रुकने और खाने का भरोसा ले, बेचिंत एक बैग में खाने पीने  और ताल में नहाने का सामान ले हम चल पड़े। घने देवदारों के पेड़ो के बीच उठते बैठते , फोटो खीचते,  डरते-डराते  आखिरकार  अपनी मंजिल पर पहुँच ही गए।

मोइला गुफा की और जाता रास्ता और पदों  के बीच दिखाई देता बुग्याल 

अजी वाह ....क्या कुदरत का करिश्मा था। कोई सोच भी नहीं सकता था के इस घने और पहाड़ी जंगलो के पीछे और एक दम नीले चमकते आसमान के नीचे सैकड़ो क्रिकेट के मैदानों के बराबर एक हरी चादर बिछी  होगी। एक दम खुला और छोटी छोटी ऊँची नीची पहाडियों का मैदान सा था। वही एक छोटी सी पहाड़ी पर बीचो बीच एक छोटा लकड़ी का मंदिर नुमा ढांचा दिखाई दे रहा था।

मोइला गुफा की और जाता रास्ता और पदों  के बीच दिखाई देता बुग्याल
 ये सब देखकर हम तो मानो जैसे स्कूल से छुटे, छोटे छोटे बच्चो की तरह दोड़ते भागते , गिरते पड़ते जब उस मंदिर नुमा ढांचे तक पहुचे तो एक बार को तो उसे देखकर हम तीनो सिहर से उठे। वो एक लकड़ी का बना मंदिर ही था पर उसमे न कोई मूर्ति न घंटा , हाँ उसमें इधर उधर  किसी जानवर के पुराने हो चुके  सिंग , कुछ बर्तन से टंगे हुए थे और एक लड़की का ही बना पुतला दरवाजे से बाहर जो की कोई  द्वारपाल सा लग रहा था। मन ही मन उस माहोल और जगह को प्रणाम कर अपने साथ लाये मिनरल वाटर की  बोतल से उन्हें जल अर्पण किया और परिकर्मा कर बड़े इत्मिनान से वहां बैठ दूर दूर तक फैली वादियों और शान्ति का मजा लेने  लगे। थोड़ी देर बाद सोचा  के चलो ताल में नहाते है फिर कुछ खा पीकर गुफाओ को ढूंढ़ेगे।

बुधेर के उस विशाल और खुले हरे भरे पहाड़ी आँगन में हम बौने लग रहे थे 

1  & 2 . रहस्यमयी मंदिर और उसके अंदर का दृश्य
3 & 4 .लकड़ी का दारपाल  और जानवरों के सिंग एवं बर्तन 

 पानी का ताल जो की थोडा और आगे था जल्दी ही दिखाई दे गया लेकिन वहां पहुँच कर नहाने का सारा प्रोग्राम चोपट हो गया। कारण उसमे पानी तो बहुत था परन्तु एक दम मटियाला। सो सिर्फ उसके साथ फोटो खीच कर ही मन को  समझा लिया। अब बारी  गुफा ढूंढने की तो लेकिन वहां चारो और दूर दूर तक कोई गुफा तो नहीं अपितु मकेक बंदरो के झुण्ड घूम रहे थे। जो की हम पर इतनी कृपा कर  देते थे की हम जिस दिशा में जाते वो वहां से दूर भाग जाते थे। हम तीनो काफी देर अलग अलग होकर  ढूंढते  रहे पर हमें तो कोई गुफा नहीं दिखी सिर्फ शुरू में आते हुए एक छोटा सा गड्ढा नुमा दिखाई दिया  था।

1  मंदिर के पास फुर्सत के लम्हे बिताते मै और प्रवीण , 2. द्वारपाल को जल अर्पण करंता अन्नू भाई
3 & 4 . ताल के  हाल ये आप देख ही लो दोनों साइड से 

हमारी खुश किस्मती  कहो कि,  न जाने कहाँ से एक पहाड़ी लड़का जो की अपने अपनी भेड़ो  और अपने साथी को ढूंढ़ रहा था,  वहां आ गया। हम उस से कुछ पूछते उल्टा वो ही हमसे पूछ  रहा था,  के हमने कहीं भेड़े और उसका साथी तो नहीं देखा। कुछ देर बात करने पर पता चला के निचे पास ही के एक गाव का रहने वाला था। गुफा और मंदिर के विषय में ज्यादा तो वो भी कुछ नहीं जानता था हाँ इतना जरुर बताया के ये किसी स्थानीय देवता का मंदिर है जो कभी आकाशीय बिजली गिरने से अब मूर्ति विहीन है।




 जब वो गुफा दिखाने  ले गया तो हम बड़ा हँसे और आश्चर्य भी हुआ की यार ये तो वही गड्ढा नुमा सा है जिसे न जाने कितनी ही बार हमें अनदेखा सा कर दिया था। वो बेचारा भी उसी फारेस्ट गार्ड  की भांति हमें किसी खोजबीन दस्ते का भू वैज्ञानिक समझ रहा था। गुफा के मुहाने के पास बैठ कर हमने थोडा खाया पिया और बड़े ही शरमाते हुए उसने भी हमारा साथ दिया। खाने पीने के बाद अब गुफा की बारी थी लेकिन वो भाई  और प्रवीण  बाबू तो घबरा कर गुफा के मुहाने पर ही बैठ गए। कि  पता नहीं अन्दर क्या हो  कोई जानवर , सांप , अजगर , भालू .......

 दूर से दिखाई देती गुफा और उसका मुहाना
गुफा से निकलता  और आराम फरमाता अनुज 

लेकिन हमारे कीड़े भाई साहब कहाँ मानने वाले थे सो मै  भी हो लिया उनके साथ। गुफा मुहाने पर बहुत ही संकरी थी सिर्फ बैठ कर ही अन्दर जाया जा सकता था। 2-4 मीटर अन्दर जाने पर हम दोनों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था एक दम घुप अँधेरा हाथो और पैरो से अंदाजा लगाते थोडा बहुत घिसटते हम आगे बढ़ते रहे। कुछ समझ नहीं आ रहा तो याद आया मोबाइल फोन की टोर्च ....चलो जी कुछ तो सही ...




गुफा के अन्दर के कुछ दृश्य और फोन और कैमरे की रौशनी  के सहारे उनसे झुझते हम 

 कभी फोन की टोर्च और कभी अंदाजे से फोटो खीचते हम लग्भग 15-16 मीटर या कुछ और आगे तक गए होंगे  .... अंदाजा लगाना मुश्किल था।  क्यूंकि वहां सब इतना रहस्यमयी और डरावना लग रहा था के समय और दूरी की तरफ तो हमारा ध्यान ही नहीं था। आगे जाने पर वो कभी 2 -3 दिशोओ में बंट जाती और बड़ी होती जाती थी। शुरुवात में हम बैठ कर फिर झुक कर और बाद में एक जगह खड़े होकर चलने लगे। एक जगह पहुँच कर इतना अँधेरा और कन्फ्यूजन था के मैंने बोला दॊस्त अब और खतरा मोल नहीं लेते ...हमारे पास  कोई साज सामान भी नहीं ....अगर गलती से भी चोट लगई तो यहाँ  दूर  तक कोई बचाने वाला  नहीं मिलेगा। मिल भी गया तो यहाँ अन्दर कैसे घुसेगा।

गुफा के अन्दर के कुछ दृश्य और फोन और कैमरे की रौशनी  के सहारे उनसे झुझते हम 
अनुज भी मेरी बात से सहमत था सो अब हम वापिस हो लिए .......मुहाने के पास पहुच देखा प्रवीण और वो लड़का हमारा ही इंतज़ार कर थे प्रवीण तो थोडा अंदर घुस भी गया था पर वो भाई तो मुहाने से अन्दर आया ही नहीं। बहार निकल हमने इत्मिनान की सांस ली और फिर एक विजयी और गुदगुदाते से आभास के साथ उस गुफा, पहाड़ी लड़के, बंदरों और मंदिर वाले स्थानीय देवता का शुक्रिया अदा कर वापसी की दोड  लगा दी।
1 & 2  गुफा के घुमाव दार रास्ते
3.  गुफा में खड़े होकर मुआइना करता अनुज , 4.  हमारे आने ही राह देखता प्रवीण और उसके पीछे पहाड़ी लड़का 

बुधेर फारेस्ट गेस्ट हाउस तक पहुंचे तो देखा के पहाड़ी लड़के का साथी और भेड़े वो भी वहां पर हैं। इन सब में हमें दो नर भेड़ो  की वर्चस्व वाली लड़ाई भी देखने को मिल गयी, जिसे अनुज ने  थोडा सा मोबाइल में कैद भी कर लिया।




3 बज गए तो वहां रुकने का प्रोग्राम कैंसिल कर दो चार फोटो खीच झटपट ही हमने वहां से गाडी दोड़ा दी। कारण के हमारे अन्नू भाई को अचानक पता नहीं कहाँ से राफ्टिंग का कीड़ा काट गया। बोला .... यार बिट्टू ... बस  अब राफ्टिंग और करनी है  मजा आ जाएगा टूर का ........अब ऋषिकेश चलते हैं वहां राफ्टिंग करेंगे ......

ये लो ...अब इसे क्या हुआ इतने जंगल में अब राफ्टिंग कहाँ से करें। कहाँ ऋषिकेश कहाँ हम चकराता के जंगलो में ...क्या प्रोग्राम था कानासर , देवबन , टाइगर  फाल ???? अब उसका क्या ...जब तक हम ये मामला सुल्झाए जो की अब अगली पोस्ट में ही संभव है। तब तक आप सुझाव दे, कि अब हम कहाँ जाये और जा सकते है के अन्नू भाई का कीड़ा भी शांत हो जाए और टूर का मजा भी आ जाए .....
मेरे इस यात्रा लेखन के लिए आपके सुझाव और शिकायते अति आवश्यक है सो कृपया सहयोग देते रहें ....जल्दी ही लोटुंगा धन्यवाद !!!!












7 टिप्‍पणियां:

  1. यात्रा वृतांत तो बहुत ही सुंदर है मै अभी तक वहां नही जा पाया लेकिन आपने सारा का सारा एक ही पोस्ट में भर दिया जबकि इसे दो तीन भाग में करके और विस्तृत रूप से दिखाते और फोटोज भी थोडे बडे हो जाते

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  2. त्यागी जी , आपके सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! दरअसल मेरे खुद का अनुभव और दुसरे अन्य ब्लॉगर भाइयो की सलाह पर ही मैंने एक दिन और एक स्थान को एक पोस्ट में साझा किया! चूँकि अधिकतर लोग एक स्थान को एक पोस्ट में पढना ज्यादा पसंद करते हैं! और जहाँ तक मुझसे बन पड़ता मैं अपने यात्राब्लॉग में स्थान की जानकारी के साथ साथ ,एक यात्री की समझ और भावनाओ को समझाने और साझा करने का प्रयत्न करता हूँ ! क्यूंकि किसी स्थान के विषय में आम जानकारी तो इन्टरनेट से भरपूर मिल ही जाती है! लेकिन उस पहाड़ या उस झरने को देखने पर क्या एक घुमक्कड़ सोचता और महसूस करता होगा, बस वही बात आप सब तक पहुंचे , यही मेरी भरपूर कोशिश भी यही रहती है!

    फिर भी किसी भी स्थान की फोटो या और जानकारी मुझसे आपसे साझा करने पर अधिक प्रसन्नता होगी .....

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  3. सुंदर चित्र और यात्रा विवरण !

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया मनीष जी!!! जो आपने मेरे ब्लॉग पर समय बिताया और मेरा उत्साहवर्धन किया

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  4. आपने 4-4 चित्र एक ही फ़ोटो में लगा दिए इससे देखने में उतना मजा नही आता जितना एक बड़ी फ़ोटो को देखने में आता है हो सके तो परिवर्तन करें वैसे यात्रा वृत्तांत उत्कृष्ट है। धन्यवाद।

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  5. धन्यवाद संजय शर्मा जी आपके कीमती सुझाव के लिए, मई अपना पूर्ण प्रयास करूँगा के आगे से बड़ी फोटो ही पोस्ट किया करू.. आप अपना साथ बनाये रखें और अपने सुझाव इसी तरह देते रहें धन्यवाद ...

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