पिछले भाग में आपने पढ़ा के कैसे हम खजुराहो से रँगवान बाँध पहुंचे और वहां की झील का नज़ारा ले आगे पन्ना टाइगर रिज़र्व में गंगऊ बाँध की और बढ़ चले। ..
पिछल भाग का लिंक http://ghoomakkar.blogspot.in/2016/02/ranguwan-dam-gangau-dam-part-1.html
थोड़ा आगे पहुचने पर फारेस्ट वालो का गेट आया वहां पर गाडी के लिए कुछ एंट्री शुल्क था याद नहीं कितना दिया था सुना है आजकल ४५०/- रुपये लेते हैं
आगे बढ़ने पर बहुत थोड़ी से चढ़ाई और एक दो घुमाव के बाद हमारे सामने एक विशाल लैंडस्केप था जिसमे बाएं हाथ पर सुनसान ,अकेला और बूढ़ा हो चला गंगऊ डैम हमें बाहे फैलाये बुलाये चला जा रहा था। मानो बहुत सालो के बाद किसी बड़े बुजर्ग को उसके छोटे छोटे बच्चे मिल गए हों ! हम भी बोलेरो से उत्तर ऐसे भी बिना लॉक लगाये उस बुजुर्ग और विशाल दूर तक फैले डैम की और बढ़ चले। वहां कोन था जो गाडी छेड़ता !
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डैम के बनाने वालो को मेरा सलाम |
सामने एक कच्चे लाल सी मिटटी के रस्ते पर आगे एक छोटा का झोपडी टाइप गेट सा था , जिस से डैम शुरू होता था और आगे सीधे जाकर बाए हाथ को मुड़ रहा था और फिर और आगे इसी तरह बहुत दूर तक और उसके पीछे केन नदी का पानी शांत और मंद मंद बहती हवा से खेलता हुआ।
गंगऊ डैम पन्ना टाइगर रिजर्व के घने जंगलों में केन और सिमरी नदियों संगम पर स्थित है जो धोदन रेंज पे पड़ता है। शायद , Gangau बांध १९०९-1915 के बीच बना ब्रिटिश युग के एक इंजीनियरिंग चमत्कार है। गंगऊ बांध में 263 फाटक हैं और इस बांध की परिकल्पित क्षमता 998.3 लाख घनमीटर हैं। जब हम वहां पहुंचे तो देखकर हैरान थे। ऐसा लगा जैसे इस अब छोड़ दिया गया है। न वहां कोई केयर टेकर था नो कोई सेक्युर्टी कुछ भी नहीं , लेकिन हालत अभी भी एक दम सॉलिड और मजबूत। देखकर अपने आप ही उसके इंजीनियर और कारीगरों को सलाम करने का मन करेगा
देखिये ये पहली झलक उस बुजुर्ग डैम की
गेट नुमा झोंपड़ी को पार कर आगे बढ़ते मेरे साथी त्यागी जी
डैम से प्रथम मुलाकात को आगे बढ़ते हमारे ड्राइवर साहब और उनके मित्र
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चलिए थोड़ा और करीब चलते हैं........ सैकड़ो खिड़कियां देखिये
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डैम की उन दोनों सुरंगो से जरा जरा सा पानी बहता हुआ ऐसा लगा जैसे वो बुजुर्ग अपनी कमजोर हो चुकी बाहो को फैला हमें अपने पास बुला रहा हो और उसी बुलावे के साथ साथ हम भी कदम आगे बढ़ाये जा रहे थे। चारो और कोतूहल भरी निगाहो से देख रहे थे ! क्या कमाल की इंजीनियरिंग थी आज भी एक दम रॉक सॉलिड।
डैम के ऊपर की तरफ आगे बढ़ने पर देखा, तो एक रेल की पटरी पूरे डैम पर दौड़ रही थी। अनुमान लगाने पर पता चला के ये पटरी वहां पड़ी एक क्रेन के लिए थी। जोकि शायद गेट खोलने आदि के लिए इस्तेमाल होती होगी। लेकिन आज वो बेचारी, लचर और लाचार दिखाई दे रही थी।
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डैम के ऊपर से नज़ारा और रेल वाली पटरी |
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ये लो भैया हम खड़े हो गए ... रेल की पटरी पर |
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पत्थर की ईंटें और बनावट देखिये क्या मजबूत |
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ये देखिये उस ज़माने की क्रेन |
एल टाइप सी अजीब सी शेप लिए हुए विसाल डैम आपने आप में एक सुरंग सा था आर पार जो उसके मेंटेनेंस के लिए होगी शायद। जिसमे सैकड़ो खिड़किया थी जिनसे रोशनी ऐसे आ रही थी मानो हम कई शीशो में एक के गहराते से माहोल में अपने अक्ष देख रहे हों। वहां जगह जगह विदेशो से लायी गयी मशीने और उपकरण आज भी ज्यों के त्यों लग रहे थे .कमाल की इंजीनियरिंग थी क्या क्वालिटी रहे होगी .. दीवारे और ईंटे आज भी अपनी ताकत और मजबूती बयान कर रही थी । वो सब देखते देखते अब हम डैम के अंदर की और जाने के लिए चल पड़े जो वही ऊपर से जाकर नीचे उतरती सीढ़ियों से था
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डैम के अंदर जाने के लिए सीढ़ियां |
इन सीढ़ियों से निचे उत्तर कर देखा तो आश्चर्य और कोतूहल से भर उठे क्या सुरंग थी। उन दोनों ड्राइवर लोगो ने भी वो सब देख आश्चर्य से भर हमें धन्यवाद दिया के आप लोगो के बदौलत हमने भी आज इस जगह को देखा । मुझे अंदजा लगाने में देर नहीं लगी की इस सुरंग में होने का असली मज़ा तो मानसून में होता होगा जब पानी डैम के ऊपर से होकर गुजरता होगा और आप इस सुरंग मेमउस पानी के बीच , सुरंग की खिड़कियों से उसे देखँते होंगे। . कैसा लगता होगा? अलग ही एडवेंचर होता होगा उसका तो।
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ये देखिये सुरंग। मानो शीसे में शीशे और शीशे |
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आश्चय और धन्यवाद के साथ फोटु खीचाते ड्राइवर साहब |
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डैम की खिड़की से झांककर तो दखो |
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ये लीजये एक अलग द्रिस्टीकोण से देखिये |
डैम के सबसे ऊपरी हिस्से पर कुछ मशीन लगी थी जो खुद ही बयाँ कर रही थी अपनी उम्र और कारीगिरी का अंदाज । लगभग १०० साल पुरानी पर आज भी चलने के लिए तैयार थी
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डैम की ऊपर की तरफ लगी मशीन |
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मेड इन इंग्लैंड -1911 |
ऊपर के चित्र देख कर आपको भी अंदाजा लग गया होगा । क्या जमाना रहा होगा कैसे ये सब किया होगा ! काबिले तारीफ़ .... वहीं ऊपर से डैम के पिछले भाग की दो चार फोटु खीच हम भी वापसी की और चल पड़े !
बहुत सुन्दर लैंडस्केप था बाँध का वातावरण इतना मोहक है प्रकृति प्रेमियों, काँटेबाज़ों और रोमांकारी लोगों के विभिन्न वर्गों के लिए यह बाँध बहुत आकर्षक है। सर्दियों के दौरान पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ यहाँ आती हैं यह जगह प्रकृति के पालने में सैर सपाटे के लिए एक आदर्श स्थान बन सकता है । हाँ जाते समय अपने साथ स्वयं के लिए पानी , खाद्य सामग्रियों ले जाए क्यूंकि वहां एशिया कुछ भी उपलब्धनहीं है।फारेस्ट एरिया होने के कारण चारपहिया वाहन के लिए प्रवेश शुल्क भी है दोनों बांधो पर और आस पास फोटोग्राफी करने का अलग ही आनंद होगा सो अपनी खूबसूरत यादें जरुर संजोये आज भी हमारे देश में देखें तो न जाने ऐसे कितने ही छुपे खजाने है जो न सिर्फ प्रयटन बल्कि आम आदमी के जीवन के लिए भी किसी खजाने से कम नहीं ,, बस जरुरत है तो सरकार की दूरदर्शिता और सार्थक प्रयासों की .. वहां से चलते हुए उस डैम को अकेला छोड़ते हुए मन बड़ा भारी सा था और सोच रहा था पता नहीं क्यों अंग्रेजो ने इतने सालो पहले ही इन्हे कैसे बना दिया की आज हम लोग इन्हे मेन्टेन भी नहीं कर पा रहे है।
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डैम के ऊपर से पीछे की तरफ लम्बाई देखिये |
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केन नदी और का नज़ारा |
उ० प्र० सरकार के सहयोग से म० प्र० में बने रनगवां बाँध ,गगऊ बांध एवं बरियारपुर बांध से बुंदेलखंड को भी पानी उपलब्ध कराया जाता है | मध्य प्रदेश की वर्षा से ही यह तीनों बांध भरते हैं। जल बंटवारे में उ० प्र० को 85 % तथा म० प्र० को 15 % जल आपूर्ति निर्धारित थी | इन बांधों की मरम्मत का जिम्मा उ० प्र० सरकार का है | मध्य प्रदेश में स्थित गंगऊ, रनगवां और बरियारपुर बांध उत्तर प्रदेश की कई हजार एकड़ खेती हर साल सींचते हैं। इन्हीं बांधों से चली नहर सैकड़ों तालाब भरती है। इससे मवेशियों को पीने का पानी मयस्सर होता है, लेकिन इस वर्ष मानसून की बेरुखी ने बांधों को बुरी तरह बदहाल बना दिया है। वह पानी से कंगाल हो गए हैं। बांधों के साथ सिंचाई विभाग भी ‘सूखा’ पड़ा है।
प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेलते चले छतरपुर जिले में आधा दर्जन से अधिक बांध होने के बावजूद सिंचाई साधनों की कमी बनी हुई है। दुर्भाग्य यह है कि यह बांध छतरपुर जिले में होने के बावजूद इनका पानी उत्तरप्रदेश के खेतों के लिए अमृत बना हुआ है। हर वर्ष इन बांधों के पानी का बंटवारा किया जाता है।
और अंत में ....
जल प्रकृति की बहुमूल्य देन है। जल के बिना जीवन तथा सभ्यता के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने अपना पहला बसेरा वहीं बनाया जहॉं जल आसानी से उपलब्ध था। प्राचीन काल से ही सभ्यता का विकास जल से जुडा है। मानव बस्तियों की स्थापना किसी न किसी जल स्रोत के निकट ही हुई।सो आज की इस चर्चा आखिर में मैं आप सब से यही प्रार्थना करूँगा के अपने लिए और आने वाली पीढ़ियों आप से जितना हो सके जल बचाये ..क्यूंकि जल ही जीवन है
आशा करूँगा आपको मेरी आज की येजगह पसंद आई होगी। कई साल होगये वहां गया था सो कुछ तो बदल भी गया होगा बाकी जानकारी आप अपने अपने माध्यम और सुविधानुसार प्राप्त कर लेंगे।
बताइयेगा जरुर आपको ये छुपा खजाना कैसा लगा !
धन्यवाद
बहुत अच्छे पंकज जी ....एक नये स्थल से परिचय के लिए.... |
जवाब देंहटाएंहम लोगो के आसपास कुछ जगह अवश्य होती है जो इक खजाने की तरह छुपी रहती है ...|
पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा |
www.safarhaisuhana.com
बहुत अच्छे
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजेश जी
जवाब देंहटाएंIt was very useful for me. Keep sharing such ideas in the future as well. This was actually what I was looking for, and I am glad to came here! Thanks for sharing the such information with us.
जवाब देंहटाएंअति सुंदर लेख पढ़ कर बहुत अच्छा लगा Free Song Lyrics
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंइस स्थान पर फिल्मो की शूटिंग होने लगे तो यह जगह टूरिस्ट स्पॉट बन सकता है।
जवाब देंहटाएंगजब का हैं ये बांध ओर इसकी बनावट व दृश्यावली।सबकुछ शानदार।
जवाब देंहटाएंगजब का दर्शनीय स्थल। जानकारी के लिए धन्यवाद।
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